" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

विवाह ना होने के योग

विवाह का ना होना अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है . चाहे यह किसी लड़की के मामले में हो या किसी लड़के के मामले में . मानसिक समस्या उतनी ही होती है विशेष कर लड़कियों के मामले में यह समस्या माता – पिता को भी बहुत अधिक संतप्त करती है . आइये देखते हैं कौन से ग्रह और उनकी कैसी स्थितियां व्यक्ति को विवाहित नहीं होने देती या बहुत प्रयासों के बाद ही विवाह होना संभावित हो पाता है –

  • यदि शुक्र एवं चन्द्रमा किसी कुंडली में क्रमशः मंगल व् शनि द्वारा दृष्ट हैं तो विवाह नहीं होगा.
  • यदि शुक्र, सप्तम भाव, नवम  भाव  अथवा पंचम  भाव में पाप ग्रह की युति में है तो विवाह नहीं होगा.
  • यदि लग्न भाव , पंचम भाव अथवा द्वादश भाव में पाप ग्रह हों और पंचम भाव में निर्बल चन्द्रमा हो तो जातक अविवाहित रहेगा.
  • यदि सप्तम भाव में कृष्ण पक्ष का चन्द्रमा , पाप ग्रह की युति में है और द्वादश भाव और लग्न भाव में भी पाप ग्रह हों तो जातक का विवाह नहीं होगा.
  • यदि कुंडली में चन्द्रमा और शुक्र से  छठे भाव में शनि अथवा मंगल या कोई अन्य पाप ग्रह हो तो जातक का विवाह नहीं होगा.
  • यदि कुंडली में सप्तमेश से  छठे भाव में शनि अथवा मंगल या कोई अन्य पाप ग्रह हो तो जातक का विवाह नहीं होगा
  • यदि शुक्र अथवा सप्तमेश , छठे अथवा आठवें  भाव में हो और उन पर पाप दृष्टि हो तो जातक का विवाह नहीं होगा.
  • यदि सप्तम भाव, सप्तमेश , द्वादश भाव , पीड़ित द्वादशेश  और विवाह कारक शुक्र यदि अपनी नीच राशि में या अस्तगत स्तिथि या पाप करतारी योग में हो तो जातक को विवाह सुख प्राप्त नहीं होता.

उपचार : उपरोक्त स्थितियों में वैदिक उपचार ही एक मात्र रास्ता शेष रह जाता है , सम्बंधित ग्रह की वैदिक शांति समय रहते करायें साथ ही विवाहोपरांत माँ कात्यायनी अनुष्ठान भी अवश्य करायें ताकि विवाह लम्बे समय तक चले .

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