" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

क्यों हो रही है याकूब को फांसी ? एक ज्योतिषीय विश्लेषण

Yakub Memon’s Death Sentence : An Astrological Analysis

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जब कभी देश – विदेश में कोई बड़ी घटना होती है तो मन उद्वेलित हो जाता है. सम्बन्ध हो या ना हो एक ज्योतिषीय सोच सोने नहीं देती और अर्ध रात्रि में लिखने बैठ गया. सोच रहा हूँ कैसे ग्रह रहे होंगे याकूब मेमन के ? इतना सुन्दर शरीर ! इतना आकर्षक चेहरा ! इतना तेज दिमाग ! इतनी अच्छी शिक्षा ! एक संपन्न परिवार में जन्म ! एक सुनहरा भविष्य ! सब कुछ तो था एक शानदार जिंदगी जीने के लिए . जब याकूब का जन्म हुआ होगा तो खुशियाँ मनायी गयी होंगी , मिठाइयाँ बाटी गयी होंगी ! परन्तु यह कैसा अंत ? क्यों हो रहा है यह सब ? और इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूढने लगा ग्रहों के संसार में .. जो पाया वह आश्चर्यजनक और भयावह था .. आप से साझा कर रहा हूँ –

मेरी जानकारी के अनुसार याकूब मेमन का जन्म सन 1962 में जुलाई के महीने में 30 तारीख, सोमवार को लगभग रात्रि 11.30 पर हुआ . जिस रात याकूब का जन्म हुआ वह आषाढ़ माह की अमावस्या की स्याह रात थी और ग्रहों की स्थिति अत्यंत ही भयावह थी शायद ऐसी ही स्थिति में पहले के ऋषि – मुनि बच्चे को राक्षस की संज्ञा दे देते थे . उस समय की लग्न और ग्रहों की स्थिति इस प्रकार है –

30 जुलाई ,1962 को रात्रि 11.30 पर ग्रहों की स्थिति

Lagna-Chart

लग्न : मेष और लग्न केतु के नक्षत्र में

सूर्य : शनि के नक्षत्र में

चंद्रमा : शनि के नक्षत्र में

मंगल : चंद्रमा के नक्षत्र में

बुध : बुध शनि के नक्षत्र में

बृहस्पति : राहू के नक्षत्र में

शुक्र : सूर्य के नक्षत्र में

शनि : चंद्रमा के नक्षत्र में

राहू : शनि के नक्षत्र में

केतु : चंद्रमा के नक्षत्र में

 

अर्थात सूर्य , चंद्रमा , बुध और राहू लग्नेश के परम शत्रु शनि के नक्षत्र में है और लग्न केतु के नक्षत्र में तथा केतु , मंगल और शनि चंद्रमा के नक्षत्र में इसका अर्थ सामान्य भाषा में यह है कि लगभग सभी ग्रह अपने परम शत्रुओं के घर में और पूरी तरह से दूषित .

कुंडली में जबरदस्त ग्रहण दोष है क्योंकि सूर्य और चंद्रमा दोनों ही राहू के साथ हैं , कुंडली में जबरदस्त प्रेत बाधा योग भी है क्योंकि चंद्रमा और सूर्य राहू के साथ , शनि के नक्षत्र में और शनि से सीधे दृष्ट हैं . सूर्य –बुध युति योजनाकार तो बनाती है परन्तु राहू का साथ उस योजनाकर को षड्यंत्रकारी बना देती है .

अब यहाँ शनि दशम भाव में है और स्वयं की राशि में है , प्रथम दृष्टया यह शश नामक महान राजयोग का सृजन कर रहा है परन्तु दुर्भाग्य वश यह वक्री है अतः राजयोग तो दिया , याकूब को प्रसिद्धि तो अपने पूरे खानदान से अधिक दिया परन्तु किस दिशा में ?

मेष लग्न में गुरु भाग्येश होने से शुभ है और यह एकादश भाव में बैठा है और तृतीय भाव, पंचम भाव और सप्तम को पूर्ण रूप से देख रहा है , गुरु की दृष्टि शुभ मानी गयी है और गुरु ने याकूब को भी खूब पराक्रमी और बुद्धिमान बनाया परन्तु विडंबना देखिये यह भी वक्री है अतः पराक्रम और बुद्धि गलत दिशा में प्रयोग हो गयी. धर्म और न्याय का पथ दिखाने वाले दो ही ग्रह हैं शनि और बृहस्पति परन्तु दुर्भाग्य से इस कुंडली में दोनों ही वक्री हैं अतः धर्म और न्याय की जगह ये अधर्म और अन्याय की ओर ले गए , गुरु के शनि की राशि और राहू के नक्षत्र में बैठने के कारण गुरु अत्यंत दूषित है और गुरु-चांडाल दोष का सृजन कर रहा है और यह पाप के रास्ते ले जाने में पूर्ण रूप से सक्षम है .

दशम भाव में वक्री शनि और केतु की युति व्यक्ति को दुर्दांत बना देती है साथ ही सूर्य और चंद्रमा के ग्रहण योग में होने के कारण यह राजद्रोह करके राजदंड का भागी हो रहा है .

सामान्यतया फांसी के लिए दशम में शनि और चतुर्थ में सूर्य या मंगल का होना ही पर्याप्त माना जाता है और यहाँ तो कई ऐसे योग हैं जो इस कुंडली को राजदंड और फांसी की ओर ले जा रहे हैं .

30 जुलाई को जब फांसी होने वाली है उस दिन जो दशा और अंतर दशा है वह है

शुक्र –गुरु –चंद्रमा –शुक्र

ज्ञात हो कि मेष लग्न के जातकों के लिए शुक्र मुख्य मारकेश होता है और उस दिन यही आगे और पीछे दोनों जगह है .

फांसी के समय लग्न और ग्रहों की स्थिति (30 जुलाई ,2015 प्रातः 7:40)

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जन्म के समय वज्र योग था और मृत्यु के समय भी विष्कुम्भ योग बन रहा है लग्न केतु की नक्षत्र में है और लग्न स्वामी सूर्य शनि की नक्षत्र में तथा राहू सूर्य की नक्षत्र में है. केतु अष्टम में , मारकेश शनि चतुर्थ भाव में वक्री है और इसकी सीधी शत्रु दृष्टि लग्न पर है . लग्नेश सूर्य द्वादश भाव में लग्न भंग योग का सृजन कर रहा है

यदि इस समय याकूब के लग्न में गोचर की स्थिति को देखा जाये तो वक्री शनि अष्टम में है , कमजोर गुरु पंचम में तो है परन्तु यह मारकेश शुक्र के प्रभाव में है और केतु की नक्षत्र में है , राहू छठे भाव में है और केतु द्वादश में अर्थात नक्षत्रों और राशियों के अनुसार सभी दूषित स्थिति में और लग्नेश और जीवन दाता मंगल तृतीय भाव में असहाय . इस प्रकार इतने दूषित ग्रहों से प्रभावित योग में जन्म लेने वाले याकूब का एक बार पुनः मारकेश , विष्कुम्भ , आषाढ़ मास जबरदस्त ग्रहण योग से सामना होगा और इस ग्रहण योग में याकूब का सूर्य अस्त हो जायेगा.

 हे शिव !

ज्योतिषविद पं. दीपक दूबे


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