सूर्य और चन्द्र ग्रहण एक खगोलीय प्राकृतिक सुंदर घटना है। सूर्य ग्रहण में कई सारी मान्यता भी है, जिसे लोग देश प्रांत के आनुसार अपनाते है। ग्रहण काल को अशुभ समझा जाता है क्योंकि उस समय सूर्य की किरणे ढक जाती जिससे कीटाणु पनपते है ब्रम्हंडिय विकिरने और न्यूट्रॉन झलकन वातावरण में ज्यादा होती है ओझोन पर भी इसका असर होता है इसलिए यह वातावरण प्रकृति के लिए नकारात्मक होता है। ग्रहण के अासपास भूकंप आदि का होना। किसी देश मे असंतोष, कोई बड़ी आपदा का होना देखा गया है और ग्रंथो में भी यही लिखा है।
२०२१ का पहला सूर्य ग्रहण का समय
दिनांक 10/06/2021 को 13:42 से शुरू होगा और 18:41 को समाप्त होगा। यह वलयाकार सूर्य ग्रहण यूरोप और एशिया में आंशिक रुप से उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड और रुस में पूर्ण रुप से दिखेगा।
२०२१ का दूसरा सूर्य ग्रहण का समय
दिनांक 4/ 12/ 2021 को 10:59 से शुरू होगा और 10:59 को समाप्त होगा। यह पूर्ण सूर्य ग्रहण अंटार्कटिका, दक्षिण अफ्रीका, अटलांटिक के दक्षिणी भाग में दिखेगा।
सूर्य ग्रहण के प्रकार
सूर्य ग्रहण वह खगोलीय घटना है जिसमें सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है और इसके कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता।
पूर्ण सूर्य ग्रहण
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण रुप से ढक जाता है। और पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण रूप से ढका हुआ रहता है तब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है।
आंशिक सूर्य ग्रहण
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है चंद्रमा के कारण सूर्य आंशिक रूप से ढक जाता है। और पृथ्वी से देखने पर सूर्य का आंशिक रूप से ढका हुआ रहता है तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है चंद्रमा के कारण सूर्य का मध्य भाग ढक जाता है और आजू बाजू सूर्य की रोशनी दिखती है। और पृथ्वी से देखने पर सूर्य अंगूठी की तरह दिखता है तब उसे वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते है।
2021 का पहला चंद्र ग्रहण
दिनांक 26/ 05/ 2021 को 14:17 के समय शुरू होगा और 19:19 को समाप्त होगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर और अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों से देखा जा सकेगा।
2021 का दूसरा चंद्र ग्रहण
दिनांक 19/ 11/ 2021 को 11:32 बजे शुरू होगा और 17:33 को समाप्त होगा। यह आंशिक चंद्र ग्रहण अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में देखा जा सकगा।
चंद्र ग्रहण भी तीन प्रकार का होता है। इसके बारे में नीचे बताया गया है।
चंद्र ग्रहण वह खगोलीय घटना है जिसमें सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाता है और इसके कारण चंद्रमा का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता।
पूर्ण चंद्र ग्रहण
जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है इस स्थिति में सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंचता। इस स्थिति में पृथ्वी चंद्रमा को पूर्णत: ढक लेती है। और पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा पूर्ण रूप से ढका हुआ दिखता है जिसे पूर्ण चंद्र ग्रहण केहते है।
आंशिक चंद्र ग्रहण
इस में पृथ्वी चंद्रमा को आंशिक रुप से ढक लेती है जिसे आंशिक चंद्र ग्रहण कहते है।
उपच्छाया चंद्र ग्रहण
इस में चंद्रमा पृथ्वी की परछाई में प्रवेश करता है जिससे उसका बिंब देखने पर कुछ मंद दिखता है तथा चंद्रमा धुंदला दिखता है इसे उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहते हैं।
ग्रहण का ग्रंथो मे वर्णन
पहले के समय में ग्रहण बोहत महत्व पूर्ण और पर्व की तरह मानते थे इसका वर्णन कई महत्व पूर्ण ग्रंथो में किया गया है। जैसे वेदों में, सूर्य सिद्धांत, बृहत संहिता, महाभारत, रामायण, ग्रहलाघव, निर्णसिन्धु, मनु स्मृति में।
ऋग्वेद से
ऋग्वेद के भाष्यकार सायानाचर्या ने कहा है की स्वरभानु नामक असुर सूर्य पे अंधेरा लाता है। जिसके कारण देवता सूर्य के दर्शन नही कर पाये तो सारे देवता आत्री ऋषि के पास गए आत्रि ऋषिजी ने मंत्र से अंधेरे को दूर किया था।
बृहत संहिता से
ग्रहण संहिता यानी मेदनी ज्योतिष का भाग है वरामिहिर रचित बृहत संहिता मे इसका वर्णन राहुचर आध्याय में मिलता है। संहिता यानि प्रकृति का बड़ा समूह जैसे कोई विशेष देश, कोई विशेष समूह, पर इसका असर पड़ता है। व्यक्ति विशेष पर इसका असर नहीं पड़ता है।
महाभारत से
महाभारत में कहा है की युद्ध के दौरान पूर्णिमा और पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाना था जिसमे सिर्फ तेरह दिन का अंतर था। जो सिर्फ अर्जुन की जान बचाने के लिए श्री कृष्णजी ने किया था, अर्जुन का प्रण था की वो अभिमन्यु के हत्यारे जयद्रथ को सूर्यास्त के पहले मृत्युदण्ड देने का नही तो अर्जुन आत्मदाह करेगा। पर उस समय असमय ही सूर्य अस्त हुआ यह पूर्ण सूर्य ग्रहण ही था जिसका रहस्य सिर्फ श्री कृष्णजी ही जानते है।
रामायण से
वाल्मीकि रामायण मे अरण्य काण्ड में पूर्ण सूर्य ग्रहण का वर्णन दिया गया है। भगवान राम और खर के दौरान यह उल्लेख है की सूर्य के आजू बाजू गहरे रंग छाया है, जल्दी शाम हुई और अचानक रात हुई, कुछ भी दिखाई नहीं देता पशु पक्षी भय से आवाज करने लगे। राहु ने सूर्य को पूरी तरह ग्रस लिया।
सूर्य और चन्द्र ग्रहण के लिए राहु केतु जिम्मेदार इससे जुड़ी पौराणिक कथा
विष्णु पुराण मे इस कथा का वर्णन है की देवता और असुरों मे लंबे समय तक युद्ध चला। विष्णु भगवानजी ने सब को रोक के समुद्र मंथन का सुझाव दिया और जो भी समुद्र मंथन से निकलेगा वह दोनो पक्ष मे बाट दिया जायेगा। इसके लिए दोनों पक्ष तैयार हुवे
समुद्र मंथन करते समय समुद्र से 14 रत्न उत्पन्न हुवे और इन में से ही अमृत निकला। अमृत के लिए असुरों और देवताओं में लड़ाई हुई, अंत में देवता अपनी समस्या लेके भगवान विष्णु के पास गये।
भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप धारण करके असुरों को मोहित कर लिया और बड़ी चतुराई से देवताओं को अमृत और असुरों को साधारण जल देने लगे। इस बात का पता
राहु असुर को चला राहु को स्वरभानु नाम से भी जाना जाता है, वह अपना रुप बदलकर चतुराई से देवताओं की कतार में बैठ गया, यह बात सूर्य और चंद्र देव को पता चल गई और उन्होंने विष्णु भगवान को यह बात बताई भगवान विष्णु को इस बात पर क्रोध आया और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से राहु को सिर धड़ से अलग कर दिया। तब तक राहु के गले तक अमृत की कुछ बूंदें जा चुकी थीं इसलिये सिर धड़ से अलग होने के बाद भी वह जीवित रहा, उसके सिर को राहु और धड़ को केतु कहा जाता है, इसी कारण राहु सूर्य-चंद्र को ग्रहण लगाता है।
राहु केतु चंद्रमा की कक्षा में 180 अंश के अंतर पर गोचर करते है। राहु केतु के काल्पनिक कपात बिंदु पृथ्वी की कक्षा तल से दो भागो में छेड़ती है।
जब सूर्य और चंद्रमा राहु या केतु के एक ही अंश पर हो तो सूर्य ग्रहण होता है। और जब सूर्य राहु पर चंद्रमा केतु के एक ही अंश पर हो या सूर्य केतु पर और चंद्रमा राहु के एक ही अंश पर हो तो चंद्र ग्रहण होता है।
ग्रहण का सूतक या अशुभ काल
सूर्य ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से 12 घण्टे पुर्व लगता है और चंद्रमा का सूतक काल 9 घंटे पुर्व लगता है।
सूतक काल में बालक, वृद्ध एवं रोगी को छोड़कर अन्य किसी को भोजन नहीं करना चाहिए। इस समय में खाद्य पदार्थो में तुलसी दल या कुशा डालना चाहिए दुर्वा घास और तुलसी में रोगाणुनाशक गुण है। गर्भवती महिलाओं को ग्रहण काल में सोना नहीं चाहिए । चाकू, छुरी से सब्जी,फल आदि काटना भी निषिद्ध माना गया है। ग्रहण के समय पहने वस्त्र आदि को ग्रहण के पश्चात धोकर व शुद्ध करके पहना चाहिए। ग्रहण काल मे इष्टदेवता के मंत्र का जप, ध्यान करना चाहिए।
दिव्याकान्ति लोकनार
AstroTips Team