अधिक मास 2020 – 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर तक की अवधि अधिक मास की रहेगी।
हिन्दू धर्म में अधिक मास को बहुत पवित्र माना जाता है। इसी कारण इस मास को ‘पुरुषोत्तम मास’ भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस मास में भगवान का पूजा करने के साथ श्री मद्भगवत कथा सुनने मंत्र जप, तप व तीर्थ यात्रा करना शुभ फल देता है। कहा जाता है इस माह में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ती होती है। ज्योतिष में चंद्रमास 354 दिन व सौरमास 365 दिन का होता है। इस कारण हर साल 11 दिन का अंतर आता है जो 3 साल में एक माह से कुछ ज्यादा होता है। चंद्र और सौर मास के अंतर को पूरा करने के लिए धर्म शास्त्रों में अधिक मास की व्यवस्था की है।
अधिक मास के संबंध में पौराणिक कथाओं में कई कहानियां मिलती है। कहते हैं ब्रह्मा जी ने हिरण्याकश्यप के पहेलीनुमा वरदान को सुलझाने के लिए ‘अधिक मास’ बनाया था। विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्याकश्यप और हिरण्याक्ष। हिरण्याकश्यप ने कठिन तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि, न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा और न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न ही घर के बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से, न ही वर्ष के किसी माह में उसे नहीं मारा जा सके। ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त होने के बाद हिरण्यकशिपु खुद को भगवान मानने लगा और लोगों पर अत्याचार करने लगा। हिरण्यकशिपु के पहलीनुमा वरदान के लिए ही ब्रह्मा जी ने ‘अधिक मास’ का निर्माण किया। जिसे साल के किसी मास में नहीं गिना जा सकता है। हिरण्यकशिपु के अन्य पहेलियो के लिए विष्णु जी ने नरसिंह भगवान का रूप में अवतार लिया और ‘अधिक मास’ में अपने नाखुनों से हिरण्यकशिपु का अंत किया।
शास्त्रों के अनुसार इस माह का निमार्ण ब्रह्मा जी ने लोगों के कल्याण के लिए किया था। इस लिए हिंदू धर्म में अधिक मास को बहुत ही पुण्य फल देने वाला माना गया है। अधिक मास को ‘पुरुषोत्तम मास’ भी कहते हैं। इस महीने में श्रीमद्भागवत की कथाएं सुनने, मंत्र जाप, तप व तीर्थ यात्रा का भी बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि इस माह में कथा जाप व तीर्थ करने से कई गुणा अधिक फल प्राप्त होता है। इस समय फल, वस्त्र, दक्षिणा एवं अपने सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करना चाहिए । मान्यता है कि इस महीने में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अधिक मास में विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते परन्तु जो कार्य पूर्व में ही प्रारंभ किए जा चुके हैं, उन्हें इस मास में किया जा सकता है। इस मास में मृत व्यक्ति का प्रथम श्राद्ध , पितृ श्राद्ध आदि किया जा सकता है। रोग आदि की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय, रूद्र जपादि अनुष्ठान किए जा सकते हैं। इस मास में तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए।
पं धीरेन्द्र नाथ दीक्षित
Astrotips Team