प्राचीन काल की बात है विन्ध्य पर्वत पर महाक्रूर क्रोधन नाम का बहेलिया रहता था. उसने हिंसा, लूटपाट , मिथ्यभाषा तथा मद्यपान में ही अपना समस्त जीवन व्यतीत कर दिया था. जब जीवन का अंतिम समय आया तब यमराज ने एक दिन पूर्व ही अपने दूतों को क्रोधन को लाने का आदेश दिया. यमराज से आज्ञा पाकर दूतों ने यह बात क्रोधन को बता दी.
मृत्यु की बात जानकार नृशंस क्रोधन अंगीरा ऋषि के आश्रम पहुंचा. ऋषिवर ने उसके अनुनय से प्रसन्न होकर आश्विन शुक्ल पक्ष का व्रत तथा भगवान् विष्णु के पूजन का विधि विधान बताया. इस प्रकार क्रोधन विधिवत व्रत पूजन करके विष्णुलोक को प्राप्त हुआ और यम के दूत खाली हाथ ही लौट गये.