" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

Paush Putrada Ekadashi Katha/पौष पुत्रदा एकादशी कथा 

Ekadashi 2024/ एकादशी  2024

प्राचीन काल में भद्रावती नामक राज्य का संचालन एक बहुत ही नेक और कुशल राजा करता था जिसका नाम सुकेतुमान था. उसकी पत्नी का नाम शैव्या था . राज्य में धन- धान्य, हाथी घोड़े सैनिक इत्यादी की कोई कमी न थी. बस एक ही कमी राजा और उसकी पत्नी को रात दिन खलती थी और वह थी संतान की कमी .
राजा  की कोई संतान न थी, जिसके कारण राजा और उसकी पत्नी दोनों ही सदैव चिंतित एवं असंतुष्ट रहते थे. पुत्र के न होने के दुःख ने राजा की रातों की नींद उड़ा दी थी.  राजा सुकेतुमान अक्सर सोचा करता था कि मेरे मरने की बाद मेरा पिंडदान कौन करेगा ? पुत्र के बिना पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुकाऊंगा ?

हताश राजा  ने एक दिन अपने शरीर को त्यागने का निश्चय किया परन्तु आत्महत्या को पाप जान कर  यह विचार भी त्यागना पड़ा. चिंता मग्न सुकेतुमान अपने घोड़े पर सवार होकर वन  की ओर निकल पड़ा. वन में राजा ने  देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है।

इस वन में कहीं  गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, तो कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया।  वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त क्यों हुआ ?

इसी विचार में आधा दिन बीत गया, अब राजा को प्यास लगी. पानी तलाश में वह इधर उधर भटकना लगा. थोड़ी दूर जाने पर राजा को एक तालाब दिखाई पड़ा . तालाब कमल पुष्पों से भरा हुआ था,सारस और हंस विहार कर  रहे थे. तालाब के  चारो ओर ऋषि मुनियों ने आश्रम बनाये थे. राजा को यह सब बहुत मनमोहक लगा. वह तुरंत ही घोड़े से उतर कर ऋषियों के आशीर्वाद पाने हेतु उनके आश्रम की ओर चल पड़ा.

ऋषियों को देखकर राजा सुकेतुमान ने आदर सहित प्रणाम किया. ऋषि भी रजा के व्यवहार से अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले “हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, कहो।” राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।

राजा ने ऋषियों को अपना दुःख सुनाया और बताया कि किस प्रकार निसंतान होने की चिंता उसे दिन रात सता रही है. राजा सुकेतुमान की व्यथा जानकार ऋषियों ने उसे बताया की आज पुत्रदा एकादशी है . आज किया गया व्रत अवश्य ही फलदायी होता है. अतः आप आज व्रत करें ईश्वर आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेंगे.

यह सिनकर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।
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 सफला एकादशी / Saflaa Ekadashi                                                                                             

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