" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

Varuthini Ekadashi Vrat/ वरूथिनी एकादशी व्रत

Ekadashi 2024/ एकादशी 2024

वरूथिनी एकादशी का पौराणिक महत्व 

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम वरूथिनी एकादशी है. वरूथिनी एकादशी  सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। इस व्रत से अभागिनी स्त्री को भी सौभाग्य मिलता है। इसी वरूथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गया था। 

शास्त्रों के अनुसार हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ माना गया है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में इसको कन्यादान के बराबर माना है।

विधि : वरूथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, वास्तव में उनको ही कन्यादान का फल मिलता है औरउनके पुण्य का आंकलन करना बहुत कठिन है.

वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी के दिन निम्नलिखित वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।

  1. अन्न ,नमक एवं तेल का सेवन
  2. चने का साग
  3. मसूर की दाल.
  4. दूसरी बार भोजन
  5. मांस ओर मदिरा
  6. कांसे के बर्तन का प्रयोग
  7. मधु (शहद)
  8. पान खाना
  9. पर निंदा
  10. क्रोध और कटु वाणी

जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है।

सागार: इस दिन खरबूजे का सागर लेना चाहिए .

फल: वरूथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी‍ एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

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