सास बहू का रिश्ता ऐसा बनता जा रहा है या यूं कहें कि वर्षों से ही ये रिश्ता ऐसा रहा है जहां खीचातानी हमेशा से देखने को मिलती रही है। बहुत कम मात्रा में ऐसे घर मिलते हैं जहां इन दोनों संबंधियों के दिल मिल रहे होते हैं।अभी तक ज्योतिष संबंधी लेखों में आपने यही पढ़ा होगा कि सास बहू की न बने तो चतुर्थ भाव खराब होता है, घर में अशांति का माहौल रहता है आदि आदि। “एस्ट्रोटिप्स” के माध्यम से मेरे इस लेख के द्वारा एक तार्किक रहस्योद्घाटन किया जा रह है कि सास बहू के झगड़े से “बहू” की कमाई पर बहुत बुरा असर पड़ता है और उसकी सेहत भी खराब होती है। वहीं सास को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है क्योंकि ऐसा करने से उसका संचित धन नष्ट होने लगता है।
हो सकता है मेरी यह बात आपको अटपटी और तथ्यहीन लग रही हो लेकिन ज्योतिष इस बात का पूर्ण समर्थन करता है। आइए जानते हैं कैसे? दरअसल ज्योतिष में ग्यारहवें भाव से हम लाभ का विचार करते हैं और ग्यारहवें भाव से ही सास की भाषा शैली और वाणी का विचार किया जाता है।
इस पर चर्चा करने से पहले ज्योतिष के 1-2 सूत्रों पर चर्चा कर लेते हैं। ज्योतिष में हम कुंडली के चतुर्थ भाव से माता का विचार करते हैं, तो वहीं सप्तम भाव से जीवन साथी या जीवन संगिनी का विचार किया जाता है। अगर हम इस आधार पर देखें तो किसी जातक या जातिका का 11वां भाव यानी कि लाभ भाव सास का धन का भाव होता है, सास की वाणी का भाव होता है। इस सिद्धांत के अनुसार यदि किसी जातक या जातिका का लाभ भाव शुभ प्रभाव में होगा तो न केवल जातक या जातिका की सास मीठा बोलने वाली होगी, बल्कि सास धनवान भी होगी। कहने का तात्पर्य यह कि जब किसी का लाभ भाव शुभ ग्रहों से युक्त होकर मजबूत होगा तो उस व्यक्ति (जातक या जातिका) की कमाई अच्छी होगी। साथ ही कुंडली वाले (जातक या जातिका) की सास मीठा बोलने वाली और धन संचय करने में निपुण होगी। यह तो रही बात किसी की कुंडली के माध्यम से उसके सास की आर्थिक स्थिति देखने की। आइए अब सास की कुंडली से बहू के बारें में टोह ले ली जाय।
आपको बता दें कि ज्योतिष में थोड़ी सी रुचि रखने वाले भी जानते हैं कि किसी व्यक्ति की कुंडली का पंचम भाव संतान का द्योतक भाव होता है और कुंडली का सप्तम भाव जीवन साथी या जीवन संगिनी का भाव होता है। यदि पंचम भाव संतान का भाव है तो पंचम से सप्तम भाव संतान की पत्नी या पति का होगा। अब इसके अनुसार देखें तो 11वां भाव बहू का द्योतक भाव होता है। 11वें भाव की स्थिति बहू के स्वभाव को दर्शाती है, बहू कैसी होगी, झगड़ालू होगी या शांत स्वभाव की होगी इसका बहुत कुछ अंदाज़ा आपके कुंडली के ग्यारहवें भाव को देखकर लग जाता है।
इस तरह हम यह सूत्र सुनिश्चित कर लेते हैं कि बहू की कुंडली का ग्यारहवां भाव सास की बोलचाल व संचित धन को दर्शाता है जबकि सास की कुंडली का ग्यारहवां भाव बहू के स्वभाव व उसके स्वास्थ्य को दर्शाता है। इस आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि यदि बहू स्वभाव की अच्छी होगी तो सास को लाभ ही लाभ मिलेगा और यदि सास की वाणी अच्छी, यानी सास हर किसी से शालीनता के सास बातचीत करेगी, बिना डांटे, उचित शब्दों में अपनत्व के साथ अपनी बात रखेगी तो बहू को लाभ ही लाभ मिलेगा। अपनी इस बात को हम संक्षेप में ऐसे भी कह सकते हैं कि सास बहू का आपसी सामंजस्य विविध प्रकार के लाभ दिलाता है, यह बात ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सिद्ध होती है।
इसके विपरीत आपस में कलह करने वाली सास-बहुओं को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। यदि किसी की कुंडली में ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह होंगे, तो इससे इस बात का संकेत मिलता है कि उसकी सास या तो आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं होगी अथवा अप्रिय बोलने वाली हो सकती है। दूसरी ओर सास की कुंडली के ग्यारहवें भाव कि में पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो इस बात का पता चलता है कि उसकी बहू स्वभाव से शांत नहीं होगी अथवा गुस्सैल या जिद्दी हो सकती है।
आपको बताते चलें कि ग्यारवें भाव के पाप ग्रह भी कमाई करवाते हैं यह बात भी ज्योतिष मानता है लेकिन सिर्फ़ कमाई हो और असामंजस्य बना रहे यह बात उचित नहीं होती। दूसरी बात यह कि यहां सिर्फ़ कुंडली वाले व्यक्ति की कमाई होगी। सामने वाले को उससे कोई लाभ नहीं होगा और स्थिति केवल स्वार्थ तक सीमित रह जाएगी। हमें पता है कि स्वार्थ से संबंध नहीं चलते और बिना संबंधियों के सुख की अनुभूति नहीं होती। अत: हमें हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि एक दूसरे की मदद करें। यहां पर हम जो चर्चा करने जा रहे हैं, उसमें एक दूसरे की मदद भी होगी, परमार्थ भी होगा और संबंधों में मिठास भी बढ़ेगी। अब इन बातों के पता चलने के बाद जरूरी यह है कि यदि किसी की कुंडली में ग्यारहवां भाव पाप ग्रहों के प्रभाव के चलते अच्छे परिणाम न दे रहा हो तो क्या करें? इसे कैसे सुधारा जाए?
आप जानते हैं कि किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कर्म सबसे बड़ा और सबसे अच्छा तरीका होता है। आप जितनी अच्छे कर्म करेंगे आपको परिणाम उतने ही अच्छे मिलेंगे। इस मामले में गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि “कर्म प्रधान विश्व करि राखा।जो जस करइ सो तस फल चाखा।” भावार्थ यह कि जो जैसा करता है उसे वैसे परिणाम मिलते हैं। सास-बहू से जुड़े इस मामले में अपने 11वीं भाव के पाप ग्रहों को शांत करने के लिए सास और बहू के क्या कर्तव्य होने चाहिए यह हम आपको बताते हैं।
बहू की आमदनी अच्छी हो इसके लिए सास को हमेंशा, हर किसी के साथ शालीन व मिठास युक्त शैली में बात करनी चाहिए। सास मीठा बोलेगी तो निश्चित है कि उसका दूसरा स्थान बलवान होगा यानी वह स्वयं तो धनवान होगी ही होगी साथ ही साथ बहू का 11वां भाव भी मजबूत होगा। इससे बहू की आमदनी मजबूत होगी। चलिए मान लेते हैं कि ये बात कुछ लोगों को तार्किक न भी लगे तो भी इससे एक फायदा तो प्रत्यक्ष दिखेगा ही, फायदा यह होगा कि मीठा बोलने से घर परिवार के लोगों के साथ संबंध बेहतर होंगे? वहीं ज्योतिष को भी साथ ले लें तो ऐसा करने से बहू का लाभ भाव मजबूत होगा यानी उसकी इनकम बढ़ जाएगी। साथ ही साथ स्वयं सास का धन भाव बेहतर होगा और सास की बचत बढ़ जाएगी।
यदि बहू अच्छा आचरण करेगी, शांत रहेगी, बेवजह विवाद नहीं करेगी तो उसका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और सास का लाभ भाव अच्छा हो जाएगा यानी बहू के शांत आचरण करने से, सभ्यता पूर्ण आचरण करने से उसका स्वास्थ्य और उसका सम्मान तो प्रत्यक्षत: बेहतर होगा ही होगा, यह बात सबको पता है; वहीं अप्रत्यक्षत: या ज्योतिषानुसार ऐसा करने से सास का लाभ भाव मजबूत होगा और सास को विभिन्न प्रकार से लाभ मिलेंगे।
इस बिन्दु को लेकर मंथन करें और सोचें कि जब इस छोटे से समझौते से बहुत बड़े बड़े लाभ मिलने वाले हैं। किसी का स्वास्थ्य बेहतर होगा तो किसी का धन, तो वहीं किसी के लाभ के द्वार भी खुल जाएंगे। तब क्यों न हम इस समझौते पर मुहर लगाकर एक नए चलन को आगे बढ़ाएं? इससे ज्योतिषीय दृष्टिकोण वाले लाभ तो मिलेंगे ही साथ प्रत्यक्षत: आपसी सौहार्द बढ़ेगा, घर परिवार में सुख शांति रहेगी और आप मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ रह सकेंगे।
पं. हनुमान मिश्रा