प्राचीन काल में चम्पावती नगर में महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था. महिष्मान राजा के पांच पुत्र थे परन्तु सबसे बड़ा पुत्र लुम्बक बहुत ही दुष्ट स्वभाव का था. पिता के बहुत समझाने पर भी लुम्बक जब अपने कुकर्मों को छोड़ नहीं पाया, तब दुखी होकर राजा महिष्मान ने लुम्बक को अपने राज्य से निकाल दिया. लुम्बक राज्य छोड़ जंगल में जाकर रहने लगा परन्तु अपनी चोरी की आदत न छोड़ पाया. वह दिन में जंगल में रहता ओर रात्री के समय अपने ही पिता के राज्य में जाकर चोरी करता.
कई बार राज्य के सिपाहियों द्वारा लुम्बक पकड़ा भी गया परन्तु राजा का पुत्र होने के कारण उसे छोड़ दिया जाता. वन में एक विशाल पीपल का वृक्ष था जिसे देवताओं का क्रीड़ास्थल मान कर पूजा की जाती थी, लुम्बक उसी पीपल के वृक्ष के नीचे रहने लगा.
कुछ समय पश्चात पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वस्त्रहीन होने के कारण लुम्बक सर्दी से ठिठुरने लगा. रात्रि में शीत लहर चलने के कारण उसके हाथ पाँव अकड़ने लगे. अधिक सर्दी के कारण लुम्बक मूर्छित हो गया. अगली सुबह एकादशी मध्यान्ह के समय लुम्बक की सूर्य की गर्मी के कारण मूर्छा टूटी तो उसे भूख लगी. खाने की तलाश में वह जंगल की ओर शिकार के लिए निकल पड़ा परन्तु अधिक दुर्बलता के कारण लुम्बक किसी भी जानवर को मार न पाया और सूर्यास्त होने तक जंगल से कुछ फल उसी पीपल के वृक्ष के नीचे लेता आया. अँधेरा होने के कारण लुम्बक ने फल वृक्ष के नीचे रखकर ईश्वर को अर्पण किये और कहा “हे ईश्वर यह फल आपको अर्पित हैं , इन्हें स्वीकार कर आप ही तृप्त हों. “ दुखी ओर भूखा होने के कारण लुम्बक उस रात सो नहीं पाया . इस प्रकार अनायास ही लुम्बक ने एकादशी का व्रत और जागरण करके भगवान् विष्णु को प्रसन्न किया. प्रसन्न होकर ईश्वर ने लुम्बक को सभी कष्टों से मुक्त किया और उसके द्वारा किये गये पाप कर्मों से भी छुटकारा दिलाया.
ईश्वर की कृपा देख लुम्बक की भी आँखे खुली और उसने सत्कर्मों को अपनाते हुए अपने पिता के राज्य का भार संभाला. लुम्बक ने ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हुए कई वर्षों तक चम्पावती राज्य पर राज किया और आजीवन भगवन नारायण की भक्ति कर मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम प्राप्त किया.
सफला एकादशी का व्रत और जागरण करने से मनुष्य को अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है और अंत समय मुक्ति की प्राप्ति होती है.