" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
" ज्योतिष भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है , और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है "- पं. दीपक दूबे
Pt Deepak Dubey

लग्न में गुरु का प्रभाव 

गुरु बहुत ही शुभ एवं देवत्व् से पूर्ण ग्रह माना गया है. केंद्र या त्रिकोण भाव गुरु की स्थिति कुंडली के लाख दोषों को नष्ट करती है. लग्न में गुरु जातक को राजा के समान सुख, संपत्ति, वैभव एवं प्रतिष्ठा देने में सक्षम है. ऐसा जातक सभी भय, बाधाओं से मुक्त होता है तथा लोकप्रिय विद्वान् तथा परिपक्व विचार एवं व्यवहार माना जाता है.

लग्नस्थ गुरु जातक को स्पष्टवादी, सत्यवादी एवं निर्भीक स्वभाव देता है. ऐसा जातक प्रायः स्वस्थ , सुंदर , आकर्षक, इमानदार, सदाचारी, भरोसेमंद तथा अपने कार्यों द्वारा यश प्राप्त करने वाला होता है.

ऐसा माना गया है कि गुरु जिस भाव में बैठता है उसकी हानि करता है परन्तु गुरु की दृष्टि जिस भाव पर पड़े उसकी वृद्धि होती है. गुरु की दृष्टि पंचम, सप्तम एवं नवं पर होने से जातक को पत्नी, सहयोगी , विद्या बुद्धि , मित्र का सुख अवश्य मिलता है. साथ ही पिता , धर्म अध्यात्म एवं राज्य से लाभान्वित होता है परन्तु देह सुख में सदा कमी बनी रहती है.

जिनके लग्न में गुरु विराजमान होते हैं वह जातक संतुलित व्यक्तित्व के धनी होते हैं तथा बहुत कम उम्र में  महतवपूर्ण पदों को प्राप्त करते हैं . लग्नस्थ गुरु का जातक नैतिक मूल्यों एवं धार्मिक आस्थाओं में दृढ विश्वास रखने वाला होता है. व्यवहार से ऐसा जातक स्नेही एवं मिलनसार तथा व्यक्तित्व प्रभावशाली एवं प्रशंसनीय होता है. उसके अनेक परिचित होते हैं तथा वह मिष्ठान प्रेमी होता है. सम्बंधित ग्रहों यदि उचित भाव में हों तो जातक शक्तिवान तथा सत्ता सुख भोगता है. ऐसा जातक सुयोग्य प्रबंधक या प्रशासक होता है.

आकर्षक व्यक्तित्व के साथ साथ लग्नस्थ गुरु का जातक गुणी, धनि एवं धार्मिक प्रवृत्ति का होता है. ऐसे जातक ज्ञानी, विद्वान् तथा निर्भीक होते हैं.

ऐसा जातक परलोक में अधिक विश्वास तथा दान पुण्य और सामाजिक भलाई के लिए अपना धन खर्च करने वाला होता है. लग्नस्थ गुरु जातक को कवि या गायक के गुण भी देता है. लग्न में गुरु होने के साथ साथ यदि राशी स्वामी भी गुरु हो तो जातक वेदों का ज्ञाता , उत्कृष्ट विद्वान् तथा स्वाध्याय में रूचि रखने वाला सुखी एवं संपन्न व्यक्ति होता है.

कर्क राशि का गुरु उच्च माना जाता है जो जातक को उच्च पद, अधिकार, सत्ता सुख तथा मान प्रतिष्ठा कम आयु में ही देने में सक्षम होता है.

मकर राशी का गुरु नीच माना गया है जो जातक को अहंकारी, भ्रष्ट, दुराचारी एकाकी एवं निसंतान बनाता है. ऐसा जातक अपने घर परिवार से दूर हो जाता है.

विषम (Odd) राशि यानी (मेष , मिथुन, सिंह, तुला , धनु , कुम्भ) का गुरु प्रायः शुभ एवं कल्याणकारी होता है.

सम(even) राशि ( वृषभ, कर्क, कन्या , वृश्चिक, मकर और मीन) का गुरु जातक को वात पित्त से सम्बंधित रोग देता है.

अग्नि तत्व राशि (मेष, सिंह, धनु ) का लग्नस्थ गुरु जातक को सफल वकील, प्रोफेसर, न्यायधीश , गायक, कवी या उपदेशक बनता है.

भू तत्व (वृषभ, मकर, कन्या) राशी का गुरु जातक के धन संचय में बाधक बनता है. ऐसा जातक आय से अधिक व्यय करके परेशानी उठाता है.

वायु तत्व राशि (तुला, कुम्भ, मिथुन) का लग्नस्थ गुरु जातक को चकित्सक, अध्यापक व् सफल वकील बनाने के लिए शुभ है.

जल तत्व (कर्क, वृश्चिक, मीन) राशी का गुरु डॉक्टरों के लिए शुभ है.


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